Dholkal Ganesh Statue Dantewada Bastar : छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा जिले से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, गणेश की अदभुत प्रतिमा ढोलकल गणेश, यह प्रतिमा 3000 फीट की ऊंचाई पर फसरपाल पहाड़ पर विराजमान हैं लोगों का मानना है कि यह मुर्ति 9वीं शताब्दी में स्थापित की गई थी। ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित इस मुर्ति की लंबाई 3 फुट व चौड़ाई 3.5 फुट है।
परशुराम जी से हुआ था गणेश जी का युद्ध : यहां के लोगों का मानना है कि भगवान गणेश और परशुराम के बीच लड़ाई इसी फरसपाल की चोटी पर हुई थी। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार थे और भगवान शिव के वरदान से वो एक बड़ा युद्ध जीतकर आए थे। इसलिए परशुराम भगवान शिव को धन्यवाद देने जा रहे थे। तभी भगवान गणेश ने उनका रास्ता रोक के उन्हे अंदर जाने से रोक दिया। इस बात पर परशुराम और भगवान गणेश के बीच लड़ाई सुरु हो गई। युद्ध के दौरान परशुराम ने अपने लोहे के शस्त्र से गणेश जी का दांत काट दिया। यही कारण है कि गणेश भगवान की सभी मुर्तियों में उनका एक दांत हमेशा कटा हुआ होता है। लोगों का मानना है कि परशुराम का लोहे का शस्त्र फरसपाल की पाहाडियों में कही गिर गया तभी से यह पहाड़ लोहे के पहाड़ बन गए हैं।
1934 में हुई थीं इस जगह की खोज : आपको यह बात जानकर बहुत हैरानी होगी की इस प्राचीन गणेश जी की प्रतिमा की खोज एक अंग्रेज भूवैज्ञनिक क्रूकशैंक ने सन् 1934 में की थी। इसके बाद भी यह प्राचीन मुर्ति लोगों की पहुंच से परे थी। इसके बाद 2012 में एक पत्रकार ने अनजाने में अपने रेगुलर ट्रेक के दौरान इस मुर्ति को दोबारा ढूंढ निकाला।
आज भी मिलते हैं यहाँ साक्ष्य : जानकारों की माने तो दंतेवाड़ा के फरसपाल की पहाड़ी में आज भी परशुराम और भगवान गणेश के बीच हुए युद्ध के साक्ष्य मौजूद होने का दावा किया जाता है। इन्ही कहानियों की वजह से यह पहाड़ और इस पहाड़ पर विराजमान मूर्ति लोगों की आस्था का केन्द्र है।
गणेश की प्रतिमा को फैंका पहाड़ से नीचे : भगवान गणेश के पूजन के लिए यहां लोग काफी दूर-दूर से आते हैं। सुनसान रहने वाली इस पहाड़ी पर भगवान गणेश की प्रतिमा के कारण ही चहल पहल रहती है। यही वजह है कि नक्सलियों को समस्या पैदा होने लगी थी। उन्होंने भगवान गणेश की प्रतिमा को पहाड़ी से नीचे गिरा दिया था, लेकिन भक्त फिर से प्रतिमा को नीचे से उपर ले आये और पूजन कर उसी स्थान पर स्थापित किया।
रास्ता है मुस्किलो से भरा : ढोलकल गणेश के दर्शन के लिए आपको 5 किलोमीटर तक की चढ़ाई करनी पड़ती है। यह चढ़ाई बहुत ही मुश्किल है तथा इस दौरान आपको यहां घने जंगल, झरने व प्राचीन पेड़ों की बड़ी बड़ी जड़े मिलेंगी। ग्रामीणों व स्थानीय लोगों के लिए यह चढ़ाई बहुत ही आसान है पर पहली बार पहाड़ चढ़ रहे लोगों के लिए यह काफी मुश्किल है।
ढोलकल गणेश कैसे पहुंचे :
सड़क मार्ग – ढोलकल गणेश तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क आपको आसानी से मिल जायेगी जिससे आप अपने वाहनों के माध्यम से पहुंच सकते हैं। यह दंतेवाड़ा से 30 किलोमीटर व राजधानी रायपुर से लगभग 340 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग – ढोलकल गणेश से सबसे निकतम रेलवे स्टेशन है, दंतेवाड़ा रेलवे स्टेशन जिसकी दुरी लगभग 30 किलोमीटर है।
हवाई मार्ग – ढोलकल गणेश से सबसे निकटतम हवाई अड्डा है रायपुर हवाई अड्डा जिसकी दूरी लगभग 350 किलोमीटर है।
हमारी राय : ढोलकल गणेश प्राक्रति का एक सुन्दर नमूना है, जो की पूरी तरह प्राकृतिक जंगलो पेड़ो व पहाड़ो से घिरा हुआ है जिसकी खूबसूरती लाजवाब है यहाँ का वातावरण मन मोह लेने वाला है ना कोई मेहेंगे हीरे – मोती ना कोई उची दीवारे और ना ही छात्तदार चबूतरा बस खुले असमान के निचे विराजमान है, प्रकृति के मजबूत चट्टान से निर्मित ढोलकल गणेश की मूर्ति। यहाँ आपको एक बार तो जरुर जाना चाहिए मै आपको यकींन के साथ कह सकता हु के यह जगह आपको काफी पसंद आयेगी I आप यहा वैसे तो किसी भी मौसम में आ सकते है लेकिन बरसात के दिनों में बाहरी आवरण व जंगलो की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है और यदि आप गणेश उत्सव के वक्त यहाँ पहोचे तो आप को काफी चहल पहल नजर आयेगी ।