महादेव मंदिर देवबलोदा:-भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर 12वीं से 13 शताब्दी के बीच कलचुरी कालीन राजाओं के द्वारा बनवाया गया था, इस अधूरे मंदिर का निर्माण लाल बलुवा पत्थरों से नागर शैली में किया गया है। जिसका मंडप भाग नवरंग शैली में बना है।
मंदिर का भूगोल (बनावट):
मंदिर की बनावट काफी विशाल है व मंदिर के दीवारों पर की गई नक्काशी उत्कृष्ट व आश्चर्यजनक कर देने वाली है। मंदिर की दीवारों पर कई प्रकार के देवी देवताओं पशु पक्षी पेड़ पौधे रामायण के प्रसंगों को दीवारों पे उकेरा गया है। मंदिर का निर्माण ऊंची जगती पर किया गया है। तथा बड़े-बड़े पत्थरों के बरामदे में मंदिर का निर्माण हुआ है। मंदिर के गर्भगृह जमीन से नीचे की ओर है, जिसमें सीढ़ी के सहारे उतरा जाता है। गर्भगृह के अंदर प्राचीन शिवलिंग भी विद्यमान है।
अन्य मुर्तिया:
मंदिर के अंदर माता पार्वती ,भगवान जगन्नाथ व और भी कई देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित है। प्रवेश द्वार के ठीक समीप भगवान गणेश की दो विशाल प्रतिमा बनी हुई है।मंदिर के ठीक सामने भगवान शिव की सवारी नंदी विराजमान है। मंदिर में दो प्रवेश द्वार है एक प्रवेश से कुंड तक पहुंचा जा सकता है। कुंड के समीप पीपल पेड़ के नीचे कई खंडित प्रतिमा संरक्षित रखी गयी है।
मंदिर के पास है प्राचीन कुंड:
मंदिर के पास एक प्राचीन कुंड भी है, लोग कहते है की इसका जल कभी नहीं सूखता। भक्तजन इसी कुंड के जल से शिवजी का अभिषेक करते हैं। भक्तों की माने तो इस पवित्र कुंड के जल से स्नान करने भर से सारे रोग का मिट जाते है। लोग घर की शुद्धि के लिए इस जल का छिड़काव भी करते है।
इतिहास:
स्थानीय लोगो का कहना है की इस मंदिर का निर्माण 6 मासी रात में किया गया था 6 मास बीत जाने के पश्चात दिन हो गई जिसके बाद इस मंदिर को ऐसी ही अधूरा छोड़ दिया गया और आज भी ऊपर का हिस्सा नहीं बन पाया है।
एक और किदवंती के अनुसार,मंदिर का शिल्पीकार मंदिर को बनाने में इतना व्यस्त हो चुका था की उसे अपने कपड़े पहनने तक का होश नहीं रहा दिन रात काम करते करते वह निर्वस्त्र हो चुका था। शिल्पीकार की पत्नी रोज शिल्पकार को भोजन लाकर देती थी लेकिन एक दिन किसी कारणवश शिल्पकार की बहन को खाना लाना पड़, शिल्पकार की बहन भोजन लेकर जैसे मंदिर पहुंची शिल्पकार नग्न अवस्था में था। बहन को आता देख शर्मिंदगी से मंदिर से छलांग लगाकर नजदीक में जो कुंड है उसमें कूद गया, उसकी बहन ने सोचा कि मेरे भैया मेरे कारण मंदिर से कूदकर आत्महत्या कर रहे है, उसने ऐसा समझकर सामने के ही तालाब में छलांग लगाकर अपनी प्राण दे देती है।
मंदिर के कुंड के बारे में कहते है की इस कुंड के अंदर दो कुए हैं। जिसमें एक कुआं का संबंध सीधा पाताल लोक से है। जिसमें निरंतर जल की धारा प्रवाहित होती रहती है। और दूसरे कुएं के अंदर एक गुप्त सुरंग बना हुआ है। जो आरंग में जाकर निकलता है, शिल्पकार इसी सुरंग मार्ग से अंदर ही अंदर आरंग पहुंच गया और श्राप वस वह आरंग में पत्थर का बन गया।
मेले का आयोजन:
महादेव की भक्ति से ओतप्रोत इस गाँव में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग दूर दूर से मेले का आनंद लेने आते हैं। सावन के हर सोमवारी में शिवजी को जल अर्पण करने के लिए जनसैलाब उमड़ता है।
शिव मंदिर देवबलोदा कैसे पहुंचे:
सड़क मार्ग – शिव मंदिर देवबलोदा तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क आपको आसानी से मिल जायेगी जिससे आप अपने वाहनों के माध्यम से पहुंच सकते हैं। यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है |
रेल मार्ग – शिव मंदिर देवबलोदा से सबसे निकतम रेलवे स्टेशन है, देवबलोदा चरोदा रेलवे स्टेशन जिसकी दुरी लगभग 38 मीटर है, व राजधानी रायपुर रेलवे स्टेशन से दुरी लगभग 20 किलोमीटर है
हवाई मार्ग – शिव मंदिर देवबलोदा से सबसे निकटतम हवाई अड्डा है, छत्तीसगढ़ का मुख्य हवाई अड्डा रायपुर हवाई अड्डा जिसकी दूरी लगभग 22 किलोमीटर है
हमारी राय:
यदि आप प्राचीन प्रतिमाओ व उनके इतिहास के बारे में जानना पसंद करते है तो आपको यह जगह जरुर पसंद आयेगा यहा आप प्राचीन मंदिरों के दर्शन के सकते है और आपको यहाँ का इतिहास भी पसंद आयेगा I मंदिर के आसपास का वातावरण भी काफी खूबसूरत है जहा मन सांत और प्रफुल्लित महसूस करता है।
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