Hareli Tihar: हरेली तिहार इंसानों और प्रकृति के बीच के आपसी रिश्ते को दर्शाता है, यही वो समय होता है जब कृषि कार्य अपने चरम पर होता है. धान रोपाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य को पूरा कर लेते हैं, इस दिन किसान खेत के कामों से फुर्सत होकर खेलों का मजा लेते है। हरेली सावन महीने की पहली अमावस्या को मनाया जाता है। दरअसल छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. यहां की आबादी खेती किसानी पर निर्भर रहती है, खेती किसानी की शुरुआत के साथ हरेली तिहार मानने की परंपरा है।
हरेली त्योहार पे क्यों की जाती है पशुओं और कृषि उपकरणों की पूजा: हरेली खासतौर पर किसान और प्रकृति का त्योहार है, सावन की पहली अमावस्या पर पड़ने वाले हरेली तिहार के दिन किसान अपने पशुओं, कृषि उपकरणों की पूजा कर उनका आभार जताते हैं, उनका मानना है कि ये सारे उनकी खेती में खूब काम आते है और अब के बाद सायद कुछ दिनों के लिए इन्हे काम में नही लिया जाएगा तो इन्हे अच्छे से साफ करके उनकी पूजा कर आभार वयक्त कर रख देते है।
गेड़ी किसे कहते है: गेड़ी बांस से बना होता है, जिसका आनंद बच्चों के साथ-साथ बड़े भी लेते हैं इस दिन किसान खेत के कामों से फुर्सत होकर खेलों का मजा लेते हैं. बड़े गेड़ी पर चढ़ कर एक दूसरे को गिराने की कोशिश करते हैं. जो पहले नीचे गिर जाता है वो हार जाता है. गेड़ी रेस भी बच्चों में बहुत लोकप्रिय है.
छत्तीसगढ़ में हरेली तिहार को गेड़ी तिहार के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गेड़ी का खासा महत्व होता है. गेड़ी चढ़ना अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है. लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा अब कम होती जा रही है, माना जाता है कि पुरातन समय में जब गलियां केवल मिट्टी की हुआ करती थी तो भरी बरसात में होने वाला त्यौहार हरेली में कीचड़ से भरी गलियों में बिना जमीन में पैर रखे बिना कीचड़ लगे गेड़ी दौड़ होती थी।
बुजुर्ग जो कि गेड़ी बनाते हैं उनका कहना है कि गेड़ी की परंपरा अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है. लेकिन इस परंपरा को बचाने के लिए वे अभी भी गेड़ी बना रहे हैं. लोकगीत के माध्यम से वे बताते हैं कि ‘ नंदा जाहि का रे, नंदा जाहि का, बांसुरी की धुन में गरवा चरैया नंदा जाहि का, गेड़ी के मचैया नंदा जाहि का, नंदा जाहि का रे, नंदा जाहि का, बांसुरी के खवैया नंदा जाहि का’.
वैसे बीते कुछ वर्षों से छत्तीसगढ़ सरकार हरेली त्योहार को आगे लाने में जुटी है। इस दिन सरकार कई तरह के आयोजन करती हैं, राज्य के गौठनों को सजाया जाता है। गौठानों में छत्तीसगढ़ी खेल गेड़ी दौड़, फुगड़ी ,भौंरा और रस्साकशी का आयोजन भी किया जाता है, साथ ही गौठानों में छत्तीसगढ़ी व्यंजन की भी पूरी व्यवस्था की जाती है।
नारियल फेक खेल क्या है: हरेली त्योहार के दिन गेड़ी के साथ ही उम्र में बड़े लोग नारियल फेंक का भी खेल खेलते है, जिसे कुछ इस तरह से खेला जाता है (कुछ दूरी तय की जाती है और फिर नारियल फैकने वाला अपनी छमता बताता है कि एक या दो बार में वहा तक पहुंचा दूंगा कोई एक ही चुनता है जैसे दो बार में पहुंचा दूंगा पहली बार फैकने पे तय की गई सीमा तक नारियल नहीं पहुंचता तो दुबारा फेंकता है अगर दुबारा फैकने पर पहुंच जाए तो ओ जीत जाता है अगर न पहुंचे तो हार जाता है) ये खेल एकदम सरल है, लेकिन इसे कुछ लोग जुआ का रूप दे चुके है, इस खेल के माध्यम से आपको लोग पैसे लगाते दिख जायेंगे।
हरेली त्योहार में बनाए जाने वाले व्यंजन: छत्तीसगढ़ लोकपर्व के साथ लोक व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है, छत्तीसगढ़ में हरेली के लिए भी कुछ खास व्यंजन हर घर में पकाए जाते हैं, जैसे- गुड़ के चीले, ठेठरी, खुरमी और गुलगुल भजिया
हरेली त्योहार में सरकार द्वारा की जाने वाली व्यवस्थाएं: हरेली त्योहार के दिन बीते कुछ वर्षों से कई तरह के आयोजन छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किए जाते है। जैसे राज्य के गौठनों को सजाया जाता है, गौठानों में छत्तीसगढ़ी खेल गेड़ी दौड़, फुगड़ी ,भौंरा और रस्साकशी का आयोजन किया जाता है. साथ ही गौठानों में छत्तीसगढ़ी व्यंजन की भी पूरी व्यवस्था होती है, इसके पीछे राज्य सरकार की मंशा छत्तीसगढ़ के लोगों को अपनी परंपरा और संस्कृति से जोड़ना है, ताकि लोग छत्तीसगढ़ की समृद्ध कला-संस्कृति, तीज-त्योहार और परंपराओं पर गर्व महसूस कर सकें।