इतिहास : अमरकंटक का इतिहास बहुत ही पुराना है। हर पत्थर, हर इमारत के उद्गम की शुरूआत की प्रारंभिक कहानी उसकी मौजूदगी से ही होती है। जिसे हम देखते, पढ़ते, लिखते एवं महसूस भी करते हैं। इतिहास अपने साथ ही साथ कई चीजों को एक साथ जोड़कर एवं साथ में लेकर चलता है। आज हम उन्हीं ऐतिहासिक जगहों में से एक जगह के बारे में बताने वाले हैं, जो की मध्यप्रदेश राज्य के अनूपपुर जिले में स्थित है। जब आप अमरकंटक के सफ़र पर निकलते हैं तो आपको पूरे रास्ते हरे भरे एवं घने पेड़ पौधे ही दिखाई पड़ते है। पूरा पहाड प्राकृतिक संपदा से लदा हुआ है। प्राकृतिक वातावरण का एक अलग ही रुख होता है, जिसे महसूस करके ही परखा जा सकता है। पहाड़ों के बीच में जब सफ़र करते हुए ठंडी ठंडी हवाएं आपके चहरे को छू कर के गुजरती है तो उसका एक अलग ही तरह की एहसास हमे प्राप्त होती है। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह एक अत्यंत ही अच्छी जगह है।
नर्मदा नदी का उद्गम स्थल : पवित्र नदी नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है अमरकंटक। जहा पर से एक छोड़े से कुंड से निकली है मां नर्मदा नदी। सात प्रमुख नदियों में से नर्मदा नदी एवं सोनभद्रा पवित्र नदियों का उद्गम स्थल है अमरकंटक। जो की आदिकाल से ही ऋषि मुनियों की तपो भूमि मानी जाती रही है। जैसा कि हम आपको बताया है की नर्मदा नदी का उद्गम यहां के एक कुंड से एवं सोनभद्रा के पर्वत के शिखर से ही हुआ है। को की मेकल नामक पर्वत से निकलती हुई आगे बढ़ती है, जिसके कारण इसे मेकलसुता के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही इसे ‘माँ रेवा’ के नाम से भी जाना एवं पहचाना जाता है। यहां आने वाले इस कुंड में स्नान जरूर करते है।
अमरकंटक के आस पास अन्य दर्शनीय स्थल-
कपिलेश्वर मंदिर : कपिल धारा के आस पास अनेक गुफायें भी है, जहां पर कई साधू संत ध्यान मुद्रा में देखने को मिलते हैं। कपिलधारा में माँ नर्मदा नदी का एक छोर डिंडोरी जिले में तथा दूसरा छोर अमरकंटक में आता है।
दूधधारा जलप्रपात अमरकंटक : अमरकंटक के पास यह प्रपात कपिल जलप्रपात से करीब 1 किलोमीटर नीचे की ओर जाने पर मिलती है। जिसकी ऊंचाई लगभग 10 फुट है। जो की कपिलधारा से काफी छोटी है। कहा जाता है कि यही पर दुर्वासा ऋषि के द्वारा तपस्या भी किया गया था। और जिसके कारण इस जल प्रपात को दुर्वासा धारा के नाम से भी जाना जाता है | इस जलप्रपात में गिरते हुए पवित्र नर्मदा नदी दूध सी समान सफेद दिखाई पड़ती है। जिसके कारण ही इस जलप्रपात को दूधधारा के नाम से जाना जाता है। किसी भी नदी का दूध की तरह सफ़ेद दिखाई पड़ना बहुत हैरान करने वाली बात लगती है। किंतु दूधधारा जल प्रपात की धारा को देखकर प्रकृति के प्रति अनूठे रूपों में और भी ज़्यादा यक़ीन हो आती है।
अमरेश्वर महादेव मंदिर अमरकंटक : यह मंदिर शहडोल सड़क पर 8 km. की दूरी पर स्थित है। जहां एक विशाल शिवलिंग स्थित है। यह शिवलिंग 11 फिट ऊंची है तथा शिवलिंग का वजन 51 टन बताई जाती है। तथा इसी जगह से ही अमरकंटक से उद्धृत तीसरी नदी जोहिला नदी की उत्पत्ति भी हुई है। जहां पर भगवन शिव जी का सुन्दर मन्दिर स्थित है। यह माना जाता है कि यहाँ पर स्थित विशाल शिवलिंग को स्वयं भगवान शिव जी के द्वारा स्थापित किया गया था। पुराणों में इस स्थान को महारुद्र मेरु के नाम से भी बताया गया है। जिसके अनुसार भगवन शिव जी माता पार्वती के साथ यही निवास किए थे।
धुनी पानी तीर्थ स्थल : अमरकंटक में ही नर्मदा मंदिर के उद्गम स्थल से केवल 4 km. दक्षिण में धुनी पानी नामक यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थल स्थित है। जिसके बारे में यह कहा जाता है कि एक बार जब एक ऋषि यहां पर तपस्या कर रहे थे। एवं पास ही में उनकी धुनी भी जल रही थी तभी इस जलते धुनी वाले स्थान से पानी की धारा निकली जिसने जलते हुए धुनी को शांत कर दिया। और उसी समय से इस स्थान का नाम धुनी पानी भी पड़ गया। आज भी यहां पर एक कुंड एवं बागीचा स्थित है। जहां पर नर्मदा परिक्रमा वासियों हेतु आश्रम की भी व्यवस्था किया गया है ,जहां पर वे आराम से रुक सकते हैं। साथ ही यह भी माना जाता ही कि इस पवित्र कुंड का पानी औषधीय गुणों से पूरी तरह भरपूर है। जिसके पानी में स्नान करने से असाधारण से असाधारण रोग भी ठीक हो जाते हैं।
इसके अलावा भी अमरकंटक में अमरेश्वर महादेव जी का मंदिर, भृगु कमंडल, संत कबीर चबूतरा, चंडिका गुफा एवं बेहगढ़ नाला श्री गणेश मंदिर इत्यादि जगहें भी घूमने के लिए काफी अच्छी एवं प्रसिद्ध है।
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