Danteswari Mandir : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 120 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ की दंतेवाड़ा जिले के दंतेवाड़ा में स्थित है मां दंतेश्वरी देवी मंदिर जो दन्तेश्वरी देवी को समर्पित है। इस मन्दिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में किया गया था। दन्तेवाड़ा शहर का नाम माता दन्तेश्वरी के नाम पर पड़ा है जो काकतीय राजाओं की कुलदेवी थी |
दंतेश्वरी मंदिर को 52वां शक्तिपीठ माना जाता है :
दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर, छः भुजाओं वाली है माता की मूर्ति वैसे तो देवी पुराण में 51वां शक्तिपीठों का ही जिक्र है, लेकिन कुछ स्थानीय मान्यताएं अलग कहती हैं। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी माता मंदिर को 52वां शक्तिपीठ भी गिना जाता है। मान्यता है कि यहां देवी सती के दांत गिरे थे। इसी कारण इस इलाके का नाम दंतेवाड़ा पड़ा है। इस मंदिर को लेकर कई तरह की कथाये व किवदंतियां प्रसिद्ध हैं।
माता दंतेश्वरी मंदिर का इतिहास :
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने भगवान शिव के प्रचंड क्रोध को शांत करने को माता सती की मृत देह को कई भागों में विभाजित कर दिया था। इसी कारण जहाँ भी माता सती के देह की हिस्से गिरे वहाँ स्थापित हुए शक्ति पीठ। दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी माता मंदिर भी उन्हीं शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है के यहाँ माता सती के दाँत गिरे हुए थे।
माता दंतेश्वरी की प्रतिमा :
मंदिर में माता दंतेश्वरी की ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित काले रंग की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा 6 भुजाओं वाली है। इनमें से दाईं ओर की भुजाओं में देवी ने शंख, खड्ग और त्रिशूल धारण कर रखे हैं जबकि बाईं ओर देवी के हाथों में घंटी, पद्म और राक्षसों के बाल हैं। प्रतिमा नक्काशीयुक्त है जिसके ऊपरी भाग में भगवान नरसिंह अंकित हैं। इसके अलावा देवी की प्रतिमा के ऊपर चाँदी का एक छत्र है।मंदिर में देवी के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं।
होली से पहले मनाई जाती है त्योहार :
होली से पहले यहाँ नौ दिवसीय फाल्गुन मड़ई नामक त्यौहार का आयोजन होता है। यह त्यौहार पूर्ण रूप से आदिवासी संस्कृति और जनजातीय विरासत से सुसज्जित त्यौहार है। इस त्यौहार के दौरान हर दिन माता दंतेश्वरी की डोली लगभग 250 देवी-देवताओं के साथ नगर भ्रमण पर निकलती हैं। आदिवासी समुदाय नृत्य आदि के द्वारा इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। हर साल नवरात्रि के दौरान पंचमी तिथि को यहाँ गुप्त पूजा का आयोजन किया जाता है। इस अनुष्ठान में मात्र मंदिर के पुजारी और उनके सहयोगी ही उपस्थित रहते हैं। बाकि लोगों को इस दौरान मंदिर में प्रवेश की मनाई रहती है।
मंदिर की बनावट :
पूरे बस्तर इलाके में सर्वाधिक महत्व रखने वाली यह मंदिर 4 भागों में विभाजित है। चालुक्य राजाओं ने मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में करवाया था। इस मंदिर के अवयवों में गर्भगृह, महा मंडप, मुख्य मंडप और सभा मंडप शामिल हैं। गर्भगृह और महामंडप का निर्माण पत्थरों से किया गया है। देवी दंतेश्वरी बस्तर क्षेत्र के चालुक्य राजाओं की कुल देवी थीं। इसी कारण उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की थी। यह प्राचीन मंदिर डाकिनी व शाकिनी नदी के संगम पर स्थित है। मंदिर का कई बार निर्माण किया जा चुका है लेकिन मंदिर का गर्भगृह लगभग 800 वर्ष पुराना है।
दंतेश्वरी मंदिर कैसे पहुंचें :
सड़क मार्ग – दंतेश्वरी माता मंदिर तक पहुंचने के लिए पक्की रोड आपको आसानी से मिल जायेगी जिससे आप अपने वाहनों के माध्यम से पहुंच सकते हैं। यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर शहर से लगभग 120 किलोमीटर दूर है |
रेल मार्ग – दंतेश्वरी मंदिर से सबसे निकतम रेलवे स्टेशन है दंतेवाडा रेलवे स्टेशन जिसकी दुरी लगभग 3 किलोमीटर है
हवाई मार्ग – दंतेश्वरी मंदिर स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा रायपुर से लगभग 120 किलोमीटर दूर है
हमारी राय
भक्ति से निपुण इंसान के लिए सक्ती पिठो के प्रति आस्था तो देखते बनती हैं । मान्यता तो यह भी है के सक्ती फिठो से की गई प्रार्थना हमेशा पूरी होती है, अगर आपको भी सक्ती पीठ से लगाव है और आपको मंदिर जाना पसंद है तो आपके लिए यह जगह सुकून से भरा होगा।
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