History of Bailadila Jagdalpur : यहां हम बैलाडीला के डिपॉजिट नंबर 5 की खदानों की बात कर रहे है। जहां पर पिछले 6 दशक से भी ज्यादा समय से NMDC (एनएमडीसी) लौह अयस्क का उत्पादन कर रही हैं। NMDC को यहां पर 672.25 हेक्टेयर भूमि में वर्ष 1965 में लौह अयस्क खनन का पट्टा मिला हुआ था। बाद में वर्ष 1993 में NMDC द्वारा 130.20 हेक्टेयर क्षेत्र वन विभाग को समर्पित कर दिया गया था। कई दशकों तक यहां पर टाउनशिप भी थी।
NMDC हर साल करीब 43 मिलियन टन लौह अयस्क का उत्पादन अकेले बैलाडीला से ही किया जाता है। अप्रैल 1968 में कमीशन भी की गई बैलाडीला के खदानों में कुल पांच खदानें हैं। ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया तथा चीन के बाद भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्र है। बैलाडीला से मिलने वाले लौह अयस्क की गुणवत्ता +66 प्रतिशत है, जिसे काफी अच्छी एवं उच्च क्वालिटी का माना जाता है। बैलाडीला से NMDC लौह अयस्क का खनन बीते 5 दशकों से भी अधिक समय से करता आ रहा है।
इसके लिए यह आवश्यक था कि बैलाडीला के चयनित एवं भंडार क्रमांक 14 के रूप में चिन्हित एवं अंकित क्षेत्र के आवश्यक विकास एवं संयंत्रों की स्थापना किया जाए। इन बुनियादी सुविधाओं के निर्माण हेतु जापान की सरकार ने आवश्यक तकनीकी सहायता, भारी उपकरण एवं धन राशि मुहैया कराई, जिसका समायोजन निर्यात किए जाने वाले लौह के अयस्क के विरुद्ध में होना था। योजना का क्रियांवय राष्ट्रीय खनिज विकास निगम NMDC के द्वारा ही किया गया। उन दिनों यह भी खबर अख़बार में थी कि लौह अयस्क के निर्यात किए जाने में होने वाला पूरा खर्च जापान सरकार ही वहन कर रही है, तथा वह 20 वर्षों तक यहां के अयस्क का दोहन करेगी। जून 1963 में यहां पर कार्य प्रारंभ भी कर दिया गाय। तथा 7 अप्रेल 1968 को यह सभी प्रकार से पूर्ण हुआ। लौह अयस्क का यहां से निर्यात इसके पूर्व से ही प्रारंभ हो गया था। आजकल तो तीन भंडारों डेपॉज़िट से भी अयस्क का दोहन हो रहा है। डेपॉज़िट क्रमांक 5 से जनवरी 1977 एवं डेपॉज़िट क्रमांक 11 से जून 1987 को दोहन प्रारंभ हुआ।
उत्खनन एवं निर्यात : यहाँ पर पाए जाने वाले लौह अयस्क “फ्लोट ओर” के नाम से जाना जाता है। जिसका मतलब होता है जो सतह पर ही मिल जाता हो एवं जिसके उत्खनन के लिए ज़मीन के अंदर जाना ना पड़ता हों। उत्खनन की पूरी व्यवस्था की बार तो हो गयी। अब बात उसके निर्यात की आती है। चूँकि जापान के साथ यह अनुबंध हुआ था तो स्पष्ट था समुद्री मार्ग से ही अयस्क जाएगा। बैलाडीला से निकटतम बंदरगाह विशाखापट्नम ही था।
सड़क मार्ग से अयस्क की ढुलाई लगभग असंभव वाली बात थी यह काफी मुश्किल था और उसका दूसरा उपाय भी था, जिसके कारण बैलाडीला के तलहटी से विशाखापट्नम बंदरगाह को जोड़ने हेतु लगभग 448 km. लंबे रेलमार्ग के निर्माण का भी प्रावधान इस परियोजना के अन्तर्गत ही शामिल था। और यही सबसे बड़ी चुनौती भी रही थी, भारत के सबसे प्राचीन पूर्वी घाट एवं पर्वत शृंखला को भेदते हुए यह रेल्वे लाइन बिछानी थी। बोग्दे बनाना अर्थात् भेदना उतना आसान भी नहीं।
चुकी पूर्वी घाट पर्वत शृंखला की ये चट्टाने क्वॉर्ट्साइट श्रेणी की थी एवं काफी समय से मौसमी मार के चलते जर्जर हो चुकी थीं। ऊँचाई भी करीब इसकी 3270 फीट थी। निश्चित ही विश्व में इतने अधिक ऊँचाई पर ब्रॉड गेज की रेल लाइन की परिकल्पना अपने आप में अनोखी थी। किसके लिए एक अलग तरह की परियोजना अस्तित्व में आई थी। जिसका नाम था DBK रेलवे प्रोजेक्ट अर्थात् दंडकारण्य बोलंगीर किरिबुरू रेलवे प्रॉजेक्ट। जापान के साथ करार के अन्तर्गत लगभग 20 लाख टन लौह अयस्क किरिबुरू जो की उड़ीसा में स्थित है से भी निर्यात किया जाना था, जिसके लिए भी तीन नये रेल लाइनों की और आवश्यकता थी। लेकिन जहाँ तक बैलाडीला का सवाल है, उसके लिए विशाखापट्नम से करीब 27 km. उत्तर में कोत्तवलसा से किरन्दुल तक करीब 448 km. लंबी लाइन भी बिछाना था। लेकिन जैसा की हमने पूर्व में ही कहा है यह कोई बिछौना ना था बल्कि यहां कहें कि लाइन को लटकानी थी। हमें इस बार पर गर्व होना चाहिए की हमारे अपने इंजीनियरों ने इस असंभव कार्य को संभव बना दिया, वो भी बहुत कम समय में। इस पूरे परिश्रम की लागत भी मात्र 55 करोड़ रुपए ही थे, जो आज होता तो 5500 करोड़ रुपयों से कम नहीं लगते। क्योंकि तीन चौथाई तो बीच के ही लोग खा पी जाते। इस रेलमार्ग के सफलता पूर्वक निर्माण से ही प्रेरित होकर ही भारत के पश्चिमी तट पर कोंकण रेलमार्ग बनाये जाने की बात भी सोची गयी थी।
विशाखापट्नम से बैलाडीला के किरंदुल रेल मार्ग को कोत्तवलसा – किरंदुल लाइन भी कहा गया था। आजकल विशाखापट्नम से भी एक्सप्रेस रेलगाडी चलती है। सितम्बर 1980 से यह रेल मार्ग विद्युतिकृत भी हो गया है, तब भारत के महत्वपूर्ण लाईने भी विद्युतिकृत नहीं हो पाई थीं। ऊंचे पहाडियों से गुजरने के कारण यहां भू परिदृश्य अद्वितीय है। इतनी सुन्दर वादियों में यात्रा किसी स्वर्ग में जाने जैसा प्रतित होता है।