मां डिडनेश्वरी मंदिर मल्हार | मल्हार बिलासपुर छत्तीसगढ़ | Dindeshvari Maiya Malhar Bilaspur Chhattisgarh

 
 
Dindeshwari Maiya Malhar Bilaspur : बिलासपुर शहर से करीब 30 किलोमीटर व राजधानी रायपुर से करीबन 130 किलोमीटर बिलासपुर से शिवरीनारायण जाने वाली सड़क मार्ग पर स्थित है मल्हार, जो मस्तुरी से 14 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। सातवी से दसवी शती के मध्य विकसित मल्हार की मूर्तिकला में उत्तर गुप्त युगिन विशेषताए स्पष्ट परिलक्षित है। मल्हार में बौद्ध स्मारकों एवं प्रतिमाओ का निर्माण इस काल की विशेषता है। यहाँ प्राचीन मुर्तिया तथा कलाकृतिया बेसुमार है।
 
 
Malhar Mata Rani
Dindeshvari Maiya Malhar Bilaspur Chhattisgarh

 

मां डिडनेश्वरी मंदिर मल्हार: शुद्ध काले ग्रेनाइड से बनी मां डिडनेश्वरी की प्रतिमा लोगों की आस्था का केंद्र है। हजारो लोग मां डिडनेश्वरी के दर्शन के लिए पहुंचते है। मान्यता है कि देवी के दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। माता अपने दरबार से किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देती। यहां स्थानीय लोगों के अलावा पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश और देशभर से लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मल्हार में पुरातत्व के अनेक मंदिरों के अवशेष हैं।
 
Puratatva
Prachin Murtikala
बेहद पुराणी है मान्यता
 
मल्हार में ताम्र पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक का इतिहास सजीव हो उठता है। कौशमबी से दक्षिण-पूर्वी समुद्र तट की ओर जाने वाला प्राचीन मार्ग बांधवगढ़, भरहुत, अमरकंटक, खरोद, मल्हाशर व सिरपुर होकर जगन्नाथपुरी की ओर जाती थी। मल्हार के उत्खननो में ईसा की दूसरी शती ब्राम्हीव लिपी में आलेखित उक मृणमुद्रा प्राप्त हुई है, जिस पर गामस कोसलीाया कोसली ग्राम लिखा हुआ मिलता है। कोसली व कोसल ग्राम का अर्थ मल्हार से 16 किलोमीटर की दुरी पर स्थित कोसला ग्राम से किया जाता है। कोसला ग्राम से पुराना गढ़ प्राचीर व परिखा आज भी वहा विद्यमान है, जो उसकी प्राचीनता को मौर्यो के समयुगीन ले जाती है।वहां कुषाण शासक विमकैडफाइसिस का एक सिक्का भी प्राप्त हुआ है।
 
 
मल्हार से जुड़ा सातवाहन वंश
 
सातवाहन शासकों की गजांकित मुद्रायें मल्हार उत्खचनन से प्राप्त हुई है। रायगढ़ जिला के बालपुर गाँव से सातवाहन शासक अपीलक का सिक्का प्राप्त हुआ था। वेदिश्री के नाम की मृण्मुद्रा मल्हा‍र में प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त सातवाहन कालीन कई अभिलेख गुंजी, किरारी, मल्हािर, सेमरसल, दुर्ग आदि स्थालों से प्राप्त हुई है। छत्तीेसगढ़ क्षेत्र से कुषाण – शासकों के सिक्केग भी मिले है। यौधेयों के भी कुछ सिक्के इस क्षेत्र से प्राप्त हुए है। मल्हार उत्खनन से ज्ञात हुआ है कि इस क्षेत्र में सुनियोजित नगर निर्माण का प्रारंभ सातवाहन काल पे हुआ था। इस काल के ईतो से बने भवन तथा ठम्मंसकित मृदभाण्डन यहां काफी मिलते है।
 
 
 
मल्हार से जुड़ा है शरभपुरिय राजवंस
 
कलचुरि शासक के पहले दक्षिण कोसल में दो प्रमुख राजवंशो सोमवंशी और शरभपुरिय का शासन रहा था | इन दिनों लगभग 425 से 655 ई. के बीचवंशो का राज्यकाल कहा जा सकता है | इस काल को छत्तीसगढ़ के इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है | ललित व धार्मिक कला के पांच मुख्य केंद्र विकसित हुई जो मल्हार, ताला, खरोद, सिरपुर, राजिम है |
पृथ्वीदेव द्वितीय के राजत्वाकाल में मल्हार पर कलचुरियो का मांडलिक शासक ब्रम्हदेव था | पृथ्वीदेव के पश्चात उसके पुत्र जाजल्लदेव द्वितीय के समय में सोमराज नामक ब्राम्हाण ने मल्हार में प्रसिद्ध केदारेश्वर मंदिर का निर्माण कराया था | यह मंदिर फिलहार पातालेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है |
 
 
मल्हार से जुड़ा है मराठा शासन
 
कलचुरि वंश का अंतिम शासक रघुनाथ सिंह था | ई.1742 में नागपुर का रघुजी भोंसले अपने सेनापति भास्कर पन्त के नेतृत्वा में उड़ीसा व बंगाल पर विजय हेतु छत्तीसगढ़ से गुजरा | उसने रतनपुर पर अक्रमण किया और उस पर विजय प्राप्त कर ली | इस प्रकार छत्तीसगढ़ से हैह्य वंशी कलचुरियो का शासन लगभग 7 शाताब्दियो पश्चात समाप्त हो गया।
 
 
यहाँ कई देवी देवताओ की मुर्तिया प्राप्त हुई है
 
उत्तर भारत से दक्षिण पूर्व की तरफ जाने वाले प्रमुख सड़क में स्थित होने के करण मल्हार का महत्व काफी बढ़ा है | मलहर बीते दिनों में नगर धीरे – धीरे काफी विकसित हुआ है तथा वहां शैव ,वैष्षव व जैन धर्मावालंबियो के मंदिरो,मठो मूर्तियों का निर्माण बड़े रूप में किया गया | मल्हार में चतुर्भज विष्णुकी एक अद्वितीय प्रतिमा मिली है | उस पर मौर्याकालीन ब्राम्हीलिपि में लेख अंकित है | इसका निर्माण काल लगभग ई.पूर्व 200 है | मल्हार व उसके समीपवर्ती क्षेत्र से विशेषतः शैव मंदिरों के अवशेस मिले है जिनसे इस क्षेत्र में शैवधर्म के विशेस उत्थान का पता चला है | इसवी 5वी से 7वी सदी तक निर्मित शिव,कर्तिकेय,गणेश,स्कन्द माता,अर्धनारीश्वर आदि की उल्लेखनीय मुर्तिया यहाँ प्राप्त हुई है | एक शिल्लापट पर कच्छप जातक की कथा अंकित हुई है | शिल्लापट पर सूखे तालाब से एक कछुए को उड़ा कर जलाशय की और ले जाते हुए दो हंस बने हुए है | दूसरी कथा उलूक – जातक की है | इसमें उल्लू को पक्षियों का राजा बनाने के लिए सिंहासन पर बैठाया गया है |

मल्हार कैसे पहुंचें:
 
सड़क मार्ग – बिलासपुर शहर से निजी वाहन अथवा नियमित परिवहन बसों द्वारा मस्तुरी होकर मल्हार तक सड़क मार्ग से यात्रा आसानी से की जा सकती है। यहाँ आने के लिए आपको पक्की सड़क आसानी से मिल जाएगी | मल्हार बिलासपुर शहर से लगभग 30 किलोमीटर व राजधानी रायपुर से लगभग 130 किलोमीटर बिलासपुर से शिवरीनारायण जाने वाली सड़क मार्ग पर स्थित है, जो मस्तुरी से 14 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
 
 
रेल मार्ग – मल्हार से सबसे निकतम रेलवे स्टेशन बिलासपुर रेलवे स्टेशन है जिसकी दुरी लगभग 30 किलोमीटर है
 
 
हवाई मार्ग – मल्हार से सबसे निकतम हवाई अड्डा है बिलासपुर हवाई अड्डा जिसकी दुरी लगभग 35 किलोमीटर है ।

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