राम नाम का गोदना बनवाकर जगा रहे भक्ति की अलख –
पूरे शरीर में राम नाम का गोदना, राम नाम लिखा वस्त्र पहनकर रामभक्ति की अलख जगाते रामनामी लोगों में रामभक्ति की अनोखी परंपरा है। बिलासपुर, छत्तीसगढ़ ( निप्र )। पूरे शरीर में राम नाम का गोदना, सिर पर मोरपंख का मुकुट धारण किए हुए और राम नाम लिखा वस्त्र पहनकर रामभक्ति की अलख जगाते रामनामी लोगों में रामभक्ति की अनोखी परंपरा है। यह परंपरा 105 साल से चली आ रही है।
ऐसी भक्तिहर साल पूष मास की शुक्ल पक्ष की प्रथम, द्वितीय व तृतीया तिथि को देखने को मिलती है। आखिल भारतीय रामनाम महासभा द्वारा हर वर्ष रामनामी मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें अनुयायी इस प्रकार की अनोखी भक्ति करते हैं। इस बार मेला बलौदाबाजार जिले के ग्राम कोदवा में हुआ, जो 105वां धर्म मेला था। रामनामी धर्म गुरु राम प्यारे पंडित ने बताया कि इस धर्म मेले की शुरुआत वर्ष 1911 में हुई थी। तब से प्रतिवर्ष यह मेला अलग-अलग जगहों में आयोजित किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 1888 में एक संत पुरुष ने रामनाम अपनाने की सलाह दी थी ।
तभी से अनुयायियों ने पूरे शरीर में रामनाम का गोदना बनाते हैं। उनका कहना है कि प्रत्येक मानव में राम का वास होता है। इसलिए हम उन्हें राम-राम कहकर संबोधित करते हैं और भगवान श्रीराम को याद करते हैं। मेले के पहले दिन भव्य कलशयात्रा निकाली गई। दूसरे व अंतिम दिन रामचरित मानस का पाठ व रामनाम जाप किया गया। इसके साथ ही मेले का समापन हुआ।
मूर्ति पूजा के हैं खिलाफ –
धर्मगुरु ने बताया कि मूलतः सतनामी समाज से जुड़े लोग ही रामनामी हैं। ये गुरु के रुप में बाबा गुरुघासी दास और आराध्य के रुप में भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं। चाहे स्त्री हो या पुरुष सभी अपने शरीर पर रामनाम का गोदना बनावाते हैं। ये मांस व मदिरा का उपयोग नहीं करते। सदाचरण अपनाते हैं, लेकिन मूर्ति पूजा के खिलाफ हैं।
धर्म गुरु का होता है चुनाव (Election of Ramnami religious leader) :-
आखिल भारतीय रामनाम महासभा के सचिव विजय धृतलहरे ने बताया कि रामनामी महासभा में धर्म गुरु का चुनाव भी किया जाता है, जो व्यक्ति मन, वचन और कर्म से शुद्ध होता है। उसे ही धर्म गुरु का दर्ज दिया जाता है। हमारी महासभा ऐसी धार्मिक संस्था है, जो धन का संचय नहीं करती । धर्मगुरु सामान्य व्यक्ति की भांति जीवन व्यतीत करते हैं। प्राप्त सहयोग राशि का उपयोग जनसेवा में किया जाता है।
जिह्या में भी राम (tattoos on Tongue) :-
ब्रह्मचारी आचार्य कार्तिक राम साधु नेत्रहीन हैं। इनके पूरे शरीर में राम नाम का गोदना तो है ही जिह्या में भी राम नाम का गोदना है। 17 साल की उम्र में अपने शरीर के सबसे नाजुक अंग जिह्या में यह गोदना बनवाया।
समय के साथ समाप्त हो रही कुछ परंपरा –
समाज के श्रीराम कोसीर ने बताया कि विवाह के पश्चात् वधु के शरीर में जब तक रामनाम अंकित न हो जाता, तब तक उसके हाथ से अन्न और जल ग्रहण न करने की परंपरा थी , लेकिन समय के साथ ही यह समाप्त हो गई।
रामनामीसमाज की अधिक फोटो –
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