Sirpur Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 70 km. व महासमुंद से लगभग 30 km. की दुरी पर महासमुंद जिले में महानदी के तट पर स्थिर है। सिरपुर अथवा श्रीपुर ऐतिहासिक जनश्रुति से प्रतीत होता है, कि भद्रावती के सोमवंशी पाण्डव नरेशों ने भद्रावती को छोड़कर सिरपुर को बसाया था। ये राजा पहले बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, किन्तु बाद में शैवमत के अनुयायी बन गए। सिरपुर में गुप्तकाल में एवं परवर्ती काल में बहुत समय तक दक्षिण कोसल या महाकोसल की राजधानी रही।
गुप्तकालीन मन्दिर : इस स्थान पर बने ईटों के बने गुप्तकालीन मन्दिरों के अवशेष मिले हुए हैं, जो की सोमवंश के नरेशों के अभिलेखों से 8 वीं सदी के सिद्ध होते हैं। ये परौली एवं भीतरगाँव के गुप्तकालीन मन्दिरों की परम्परा में हैं। श्री कुमारस्वामी ने भूल से इन मन्दिरों को 6 वीं सदी का मान लिया था। 1954 ई. के उत्खनन में यहाँ पर उत्तर गुप्तकालीन मन्दिरों के भी अवशेष मिले हुए हैं।
लक्ष्मण मन्दिर : यहाँ पर उत्तर गुप्तकालीन कला की विशेषता जानने हेतु विशाल लक्ष्मण मन्दिर का वर्णन ही पर्याप्त हैं। जिसका तोरण 6’×6′ है, जिस पर कई प्रकार की नक़्क़ाशी की गई हैं। जिसके ठीक ऊपर शेषशायी विष्णु की सुन्दर मूर्ति (प्रतीमा) स्थित है। विष्णु जी की नाभि से उद्भूत कमल पर ब्रह्मा जी आसीन हैं। विष्णु जी के प्रतिमा के चरणों में लक्ष्मी जी विराजमान हैं। पास ही में वाद्य ग्रहण किए गंधर्व प्रदर्शित हैं। तोरण भी लाल पत्थर का बना हुआ है। मन्दिर के गर्भ गृह में लक्ष्मण की मूर्ति भी स्थित है। जिनका आकर 26″×16″ है। इसकी कटि में मेखला, कानों में कुण्डल, गले में यज्ञोपवीत एवं मस्तक पर जटाजूट शोभित है। जो एक पाँच फनों वाले सर्प पर आसीन है। जो की शेषनाग का प्रतीक है। मन्दिर मुख्य रूप से ईटों से ही निर्मित है। किन्तु उस पर जो शिल्प प्रदर्शित किया हुआ है उससे यह तथ्य बहुत आश्चर्यजनक है क्योंकि ऐसी सूक्ष्म एवम् अदभुत नक़्क़ाशी तो पत्थर पर भी कठिनाई से किया जा सकता है। शिखर एवं स्तम्भों पर जो बारीक़ काम है वह भारतीय शिल्पकला का अद्भूत उदाहरण प्रस्तुत करता है। गुप्तकालीन भित्ती गवाक्ष इस मन्दिर की प्रमुख वेशेषता है। मन्दिर की ईटें की आकर 18″×8″ हैं। इन पर जो सुकुमार एवं सूक्ष्म नक़्क़ाशी है वह भारत भर में अद्वितीय एवं बेजोड़ है। ईटों के मन्दिर के गुप्तकाल के वास्तु में काफ़ी सामान्य ही थे। लक्ष्मण देवालय के निकट ही राम मन्दिर भी स्थित है। किन्तु अब यह खण्डहर बन चुका है। तात्कालिक समय में पाण्ड़ुवंश यहां शासन कर रहा था। जिनकी माता वासट ने अपने पति हर्षगुप्त कि याद में ही लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था।
गंधेश्वर महादेव मन्दिर (Gandheshwar Mahadev Mandir Sirpur) : सिरपुर का एक और मन्दिर गंधेश्वर महादेव जी है। जो की महानदी के ठीक तट पर स्थित है। जिसके दो स्तम्भों पर अभिलेख उत्कीर्ण हुआ हैं। साथ ही साथ यह भी कहा जाता है कि चिमनाजी भौंसले द्वारा इस मन्दिर का जीर्णोद्वार करवाया गया था, एवं इसकी व्यवस्था हेतु ज़ागीर से नियत कर दी गई थी। यह मन्दिर वास्तव में सिरपुर से मिले हुए अवशेषों की सामग्री से ही बनी हुई प्रतीत होती है। सिरपुर के बौद्धकालीन अनेक मूर्तियाँ भी यहां से मिली हुई हैं। जिनमे से तारा की मूर्ति ही सर्वाधिक सुन्दर है। सिरपुर की तीवरदेव के राजिम ताम्रपट्ट लेख में उल्लेखित है। 14 वीं सदी के प्रारम्भ में, यह नगर वारंगल के ककातीय नरेशों के राज्य की सीमा में ही स्थित था। 310 ई. में अलाउद्दीन ख़िलजी के सेनापति मलिक काफ़ूर ने वारंगल की ओर कूच करते समय सिरपुर पर भी आक्रमण किया था, जिसका वृत्तान्त अमीर ख़ुसरो द्वारा लिखा गया है। सिरपुर को उस समय में सीरपुर भी कहा जाता था
1977 को यहा हुई थी खुदाई : सन 1977 में यहाँ पर पुरातत्व विभाग के द्वारा यहाँ खुदाई का कार्य करवाया था जिसमे अनेक पुरातात्विक सामग्री मिली है जैसे शिला लेख ,ताम्र पत्र बौद्ध विहार अनेक प्राचीन मुर्तिया प्राप्त हुआ था जो अपने आप में अध्भूत है। यहा पर अभी भी खुदाई करने से पुराने अवशेस मुर्तिया आदि मिलती है। शिरपुर का इतिहाष और खोजना बाकि है।
शिरपुर महोत्सव भी मनाया जाता है : यहाँ पर शिरपुर के सम्मन में शिरपुर महोत्सव का भी आयोजन शासन के द्वार कराया जाता है। जिसमे भारी संख्या में लोग उपस्थित होते है एवं महोत्सव को और भी अधिक आकर्षक बनाते हैं। इस महोत्सव रंगारंग धार्मिक कार्यक्रम होता है। यहा पर भारी मात्रा में श्रवण के महीने में शिव भक्त आया करते है, तथा भगवान गंधेश्वर को जल अभिषेक भी करते है। पूरा वातावरण ही शिव मई हो जाता है जिसकी भीड़ भी देखने लायक होती है। शिरपुर एक अत्यन्त ही उत्तम पर्यटन स्थल है शिरपुर प्राकृतिक दृष्टी से भी परिपूर्ण है। यहाँ के घने जंगल के बिच में ही शिरपुर स्थित है। यहाँ पर प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर 3 दिनों का मेला आयोजित होता है। जिसमे भारी भीड़ देखने को मिलती हैं।
अन्य धर्म की छवि : ईटों से बनी हुई यह मंदिर, एक ऊंचे प्लेटफॉर्म पर एवं तीन प्रमुख भागों में बटा हुआ है। जिन्हे गर्भ गृह ( मुख्य घर ), मंडप ( एक शेल्टर ) एवं अंतराल ( पैसज ) कहा जाता है। अन्य धर्मो को भी खूबसूरती से मंदिर में वातायान, अजा, चित्या गोवाक्सा, कीर्तिमख एवं भारवाहाक्गाना कामा अमालक के रूप में डिजाइन किया गया है।
अन्य मंदिर : केवल भारत से ही नहीं अपितु देश-विदेश से इस नगर एवं लक्ष्मण मंदिर को देखने के लिये लोग यहां आया करते है। यहाँ पर काफ़ी प्राचीन मंदिर एवं मुर्तिया स्थित है जिन्हे एक संग्राहलय में सजो के रखा गया है। जिन्हे आप एक ही बार एक ही साथ देख सकते है। मंदिर अपनी बनावट एवं महीन नक्काशी के लिये बहुत ही प्रसिद्ध है। सिरपुर में लक्ष्मण मंदिर के साथ ही साथ बहुत से मंदिर दर्शनीय मंदिर है। जिसमे प्रमुख गंधेश्वर महादेव मंदिर ,चंडी मंदिर, राधा कृष्णा एवं आनंद प्रभु कुटीर विहार प्रमुख रूप से है।
सिरपुर कैसे पहुंचे :
सड़क मार्ग – सिरपुर तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क आपको आसानी से मिल जायेगी जिससे आप अपने वाहनों के माध्यम से पहुंच सकते हैं। यह महासमुंद जिले से लगभग 30 km. व राजधानी रायपुर से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग – सिरपुर से सबसे निकतम रेलवे स्टेशन है, महासमुंद रेलवे स्टेशन जिसकी दुरी लगभग 35 km. है।
हवाई मार्ग – सिरपुर से सबसे निकटतम हवाई अड्डा है, रायपुर हवाई अड्डा है जिसकी दूरी लगभग 75 km. है।